कलियुगी मानव
कलियुगी मानव
अपने अपने स्वार्थ में
लिप्त हुए सब लोग ।
परहित से परहेज है
बहुत बड़ा यह रोग ।।
आपस में ही लोग अब
कीचड़ रहे उछाल ।
नहीं है संयम वाणी पर
स्वयं बजाते गाल ।।
भ्रष्टपुरूष भी पा रहे
पद पैसा सम्मान ।
प्रतिभाएँ कुंठित हुई
रोते हैं गुणवान ।।
हे ईश्वर अब आप रखें
अखिल विश्व का ध्यान ।
संकट में सब सज्जन हैं
नाच रहे शैतान ।।
नैतिकता के पुनर्जीवित होने की मंगल कामना
आपका शुभ चिंतक
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